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Monday, January 4

Mahesh Navami Story महेश नवमी की कथा

 Mahesh Navami Story, Pujan Vidhi :- महेश नवमी माहेश्वरी समाज का प्रमुख पर्व है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। माहेश्वरी समाज की उत्पति भगवान शिव के वरदान से इसी दिन हुई। महेश नवमी के दिन देवाधिदेव शिव व जगतजननी मां पार्वती की आराधना की जाती है।

Mahesh Navami Katha

महेश नवमी की कथा | Mahesh Navami Story

एक खडगलसेन राजा थे। प्रजा राजा से प्रसन्न थी। राजा व प्रजा धर्म के कार्यों में संलग्न थे, पर राजा को कोई संतान नहीं होने के कारण राजा दु:खी रहते थे। राजा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कामेष्टि यज्ञ करवाया। ऋषियों-मुनियों ने राजा को वीर व पराक्रमी पुत्र होने का आशीर्वाद दिया, लेकिन साथ में यह भी कहा 20 वर्ष तक उसे उत्तर दिशा में जाने से रोकना। नौवें माह प्रभु कृपा से पुत्र उत्पन्न हुआ। राजा ने धूमधाम से नामकरण संस्कार करवाया और उस पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा। वह वीर, तेजस्वी व समस्त विद्याओं में शीघ्र ही निपुण हो गया।

एक दिन एक जैन मुनि उस गांव में आए। उनके धर्मोपदेश से कुंवर सुजान बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली और प्रवास के माध्यम से जैन धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे। धीरे-धीरे लोगों की जैन धर्म में आस्था बढ़ने लगी। स्थान-स्थान पर जैन मंदिरों का निर्माण होने लगा।

एक दिन राजकुमार शिकार खेलने वन में गए और अचानक ही राजकुमार उत्तर दिशा की ओर जाने लगे। सैनिकों के मना करने पर भी वे नहीं माने। उत्तर दिशा में सूर्य कुंड के पास ऋषि यज्ञ कर रहे थे। वेद ध्वनि से वातावरण गुंजित हो रहा था। यह देख राजकुमार क्रोधित हुए और बोले- ‘मुझे अंधरे में रखकर उत्तर दिशा में नहीं आने दिया’ और उन्होंने सभी सैनिकों को भेजकर यज्ञ में विघ्न उत्पन्न किया। इस कारण ऋषियों ने क्रोधित होकर उनको श्राप दिया और वे सब पत्थरवत हो गए।

राजा ने यह सुनते ही प्राण त्याग दिए। उनकी रानियां सती हो गईं। राजकुमार सुजान की पत्नी चन्द्रावती सभी सैनिकों की पत्नियों को लेकर ऋषियों के पास गईं और क्षमा-याचना करने लगीं। ऋषियों ने कहा कि हमारा श्राप विफल नहीं हो सकता, पर भगवान भोलेनाथ व मां पार्वती की आराधना करो।

सभी ने सच्चे मन से भगवान की प्रार्थना की और भगवान महेश व मां पार्वती ने अखंड सौभाग्यवती व पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। चन्द्रावती ने सारा वृत्तांत बताया और सबने मिलकर 72 सैनिकों को जीवित करने की प्रार्थना की। महेश भगवान पत्नियों की पूजा से प्रसन्न हुए और सबको जीवनदान दिया।

भगवान शंकर की आज्ञा से ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य धर्म को अपनाया। इसलिए आज भी ‘माहेश्वरी समाज’ के नाम से इसे जाना जाता है। समस्त माहेश्वरी समाज इस दिन श्रद्धा व भक्ति से भगवान शिव व मां पार्वती की पूजा-अर्चना करते हैं।

महेश नवमी पूजन विधि | Mahesh Navami Pujan Vidhi

  • महेश नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि के बाद भगवान शिव की प्रतिमा के समीप पूर्व या उत्तर में मुख करके बैठ जाएं।
  • हाथ में जल, फल, फूल और चावल लेकर इस मंत्र – मम् शिवप्रसाद प्राप्ति कामनया महेश नवमी निमित्तं शिवपूजनम् करिष्ये – से संकल्प करें।
  • संकल्प के बाद माथे पर भस्म का तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें।
  • गंध, पुष्प और बिल्वपत्र आदि से भगवान शिव-पार्वती का पूजन करें।
  • भगवान शंकर की मूर्ति न होने की स्थिति में महेश्वराय नम: का स्मरण करते हुए भीगी हुई
  • चिकनी मिट्टी से हाथ के अंगूठे के आकार की मूर्ति बनाएं।
  • इसके बाद शूलपाणये नम: से मूर्ति की प्रतिष्ठा और पिनाकपाणये नम: से भगवान का आह्वान करें।
  • तदोपरांत शिवाय नम: से स्नान कराने के बाद पशुपतये नम: से गंध, पुष्प, धूप, दीप के बाद भोग अर्पित करें।
  • इसके बाद भगवान शिव से प्रार्थना करें
    जय नाथ कृपासिंधोजय भक्तार्तिभंजन।
    जय दुस्तरसंसार-सागरोत्तारणप्रभो॥
    प्रसीदमें महाभाग संसारात्र्तस्यखिद्यत:।
    सर्वपापक्षयंकृत्वारक्ष मां परमेश्वर॥
  • पूजन के बाद उद्यापन कर शिव मूर्ति का विसर्जन कर देनी चाहिए।
  • महेश नवमी के दिन इस तरह भगवान शिव का पूजन करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।

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