Ganndharvsen mysterious temple story : इस बार हम आपको एक ऐसे मंदिर में ले जा रहे हैं, जिसका अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी है और जिससे जुड़े हैं कई चमत्कार। यह है राजा गंधर्वसेन की नगरी गंधर्वपुरी का गंधर्वसेन मंदिर। यह सिंहासन बत्तीसी की एक ‘कहानी’ का स्थान है।
भारत की प्राचीन और ऐतिहासिक नगरी गंधर्वपुरी के गंधर्वसेन मंदिर के गुंबद के नीचे एक ऐसा स्थान है, जिसके बीचोबीच बैठता है पीले रंग का एक इच्छाधारी नाग, जिसके चारों ओर दर्जनों चूहे परिक्रमा करते हैं। आखिर क्यों इस रहस्य को कोई आज तक नहीं जान पाया।
गांव के लोग इसे नागराज का ‘चूहापाली’ स्थान कहते हैं और इस स्थान को हजारों वर्ष पुराना बताते हैं। कहते हैं कि नाग और चूहे आज तक नहीं दिखे, लेकिन परिक्रमा पथ पर चूहों की सैकड़ों लेंडियां और उसके बीचोबीच नाग की लेंडी पाई जाती है। गांव वालों ने उस स्थान को कई बार साफ कर दिया, लेकिन न मालूम वे लेंडियां कहां से आ जाती हैं।
इस प्राचीन मंदिर में राजा गंधर्वसेन की मूर्ति स्थापित है। मालवा क्षत्रप गंधर्वसेन को गर्धभिल्ल भी कहा जाता था। वैसे तो राजा गंधर्वसेन के बारे में कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन इस स्थान से जुड़ी उनकी कहानी अजीब ही है। ग्रामीणों का मानना है कि यहां पर राजा गंधर्वसेन का मंदिर सात-आठ खंडों में था। बीचोबीच राजा की मूर्ति स्थापित थी। अब राजा की मूर्ति वाला मंदिर ही बचा है, बाकी सब काल कवलित हो गए।
यहां के पुजारी महेश कुमार शर्मा से पूछा गया कि चूहे इच्छाधारी नाग की परिक्रमा लगाते हैं इस बात में कितनी सचाई है, तो उनका कहना था कि यहां नाग की बहुत ही ‘प्राचीन बाम्बी’ है और आसपास जंगल और नदी होने की वजह से कई नाग देखे गए हैं, लेकिन इस मंदिर में चूहों को देखना मुश्किल ही है, फिर भी न जाने कहां से चूहों की लेंडी आ जाती हैं, जबकि ऊपर और नीचे साफ-सफाई रखी जाती है। हम हमारे पूर्वजों से सुनते आए हैं कि इस मंदिर की रक्षा एक इच्छाधारी नाग करता है।
यहां के स्थानीय निवासी कमल सोनी और केदारसिंह कुशवाह बताते हैं कि हम बचपन से ही चूहापाली के इस चमत्कार को देखते आए हैं। हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि यहां इस बाम्बी में एक इच्छाधारी पीला नाग रहता है, जो हजारों वर्ष पुराना है। उसकी लम्बी-लम्बी मूंछें हैं और वह लगभग 12 से 15 फीट का है। हमारे ही गांव के रमेशचंद्र झालाजी ने वह नाग देखा था। बहुत किस्मत वालों को ही वह दिखाई देता है।
शेरसिंह कुशवाह, विक्रमसिंह कुशवाह और केदारसिंह कुशवाह का कहना है कि हमारा घर मंदिर के निकट है। रोज ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर से घंटियों की कभी-कभार आवाज सुनी गई है। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन अक्सर ऐसा होता है कि जब मंदिर का ताला खोला जाता है तो पूजा-आरती के पूर्व ही मंदिर अंदर से साफ-सुथरा मिलता है और ऐसा लगता है जैसे किसी ने पूजा की हो।
जिस तरह इस मंदिर में चूहे नाग की परिक्रमा करते हैं वैसे ही यहां की नदी सोमवती भी इस मंदिर का गोल चक्कर लगाते हुए कालीसिंध में जा मिली है।
जब हमने गंधर्वपुरी गांव के सरपंच विजयसिंह चौहान से इस संबंध में बात की तो उनका भी यही कहना था कि चूहापाली में सैकड़ों सालों से यह चल रहा है। यहां परिक्रमा के अवशेष पाए जाते हैं, लेकिन आज तक किसी ने देखा नहीं। गांव के बड़े-बूढ़ों से सुनते आए हैं।
यह एक प्राचीन नगरी है और यहां आस्था की बात पर ग्रामीणजन कहते हैं कि गंधर्वसेन के मंदिर में आने वाले का हर दुख मिटता है। जो भी यहां आता है उसको शांति का अनुभव होता है। यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। इसका गुंबद परमारकाल में बना है, लेकिन नींव और मंदिर के स्तंभ तथा दीवारें बौद्धकाल की मानी जाती हैं। राजा गंधर्वसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य और भर्तृहरि के पिता थे।
अब यह आपको तय करना है कि क्या वाकई यह चमत्कार है या अंधविश्वास।
कैसे पहुंचे :
देवास की सोनकच्छ तहसील में स्थित है गंधर्वपुरी। देवास से बस द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। देवास के लिए इंदौर से बस और ट्रेन उपलब्ध है।
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भारत की प्राचीन और ऐतिहासिक नगरी गंधर्वपुरी के गंधर्वसेन मंदिर के गुंबद के नीचे एक ऐसा स्थान है, जिसके बीचोबीच बैठता है पीले रंग का एक इच्छाधारी नाग, जिसके चारों ओर दर्जनों चूहे परिक्रमा करते हैं। आखिर क्यों इस रहस्य को कोई आज तक नहीं जान पाया।
गांव के लोग इसे नागराज का ‘चूहापाली’ स्थान कहते हैं और इस स्थान को हजारों वर्ष पुराना बताते हैं। कहते हैं कि नाग और चूहे आज तक नहीं दिखे, लेकिन परिक्रमा पथ पर चूहों की सैकड़ों लेंडियां और उसके बीचोबीच नाग की लेंडी पाई जाती है। गांव वालों ने उस स्थान को कई बार साफ कर दिया, लेकिन न मालूम वे लेंडियां कहां से आ जाती हैं।
इस प्राचीन मंदिर में राजा गंधर्वसेन की मूर्ति स्थापित है। मालवा क्षत्रप गंधर्वसेन को गर्धभिल्ल भी कहा जाता था। वैसे तो राजा गंधर्वसेन के बारे में कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन इस स्थान से जुड़ी उनकी कहानी अजीब ही है। ग्रामीणों का मानना है कि यहां पर राजा गंधर्वसेन का मंदिर सात-आठ खंडों में था। बीचोबीच राजा की मूर्ति स्थापित थी। अब राजा की मूर्ति वाला मंदिर ही बचा है, बाकी सब काल कवलित हो गए।
यहां के पुजारी महेश कुमार शर्मा से पूछा गया कि चूहे इच्छाधारी नाग की परिक्रमा लगाते हैं इस बात में कितनी सचाई है, तो उनका कहना था कि यहां नाग की बहुत ही ‘प्राचीन बाम्बी’ है और आसपास जंगल और नदी होने की वजह से कई नाग देखे गए हैं, लेकिन इस मंदिर में चूहों को देखना मुश्किल ही है, फिर भी न जाने कहां से चूहों की लेंडी आ जाती हैं, जबकि ऊपर और नीचे साफ-सफाई रखी जाती है। हम हमारे पूर्वजों से सुनते आए हैं कि इस मंदिर की रक्षा एक इच्छाधारी नाग करता है।
यहां के स्थानीय निवासी कमल सोनी और केदारसिंह कुशवाह बताते हैं कि हम बचपन से ही चूहापाली के इस चमत्कार को देखते आए हैं। हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि यहां इस बाम्बी में एक इच्छाधारी पीला नाग रहता है, जो हजारों वर्ष पुराना है। उसकी लम्बी-लम्बी मूंछें हैं और वह लगभग 12 से 15 फीट का है। हमारे ही गांव के रमेशचंद्र झालाजी ने वह नाग देखा था। बहुत किस्मत वालों को ही वह दिखाई देता है।
शेरसिंह कुशवाह, विक्रमसिंह कुशवाह और केदारसिंह कुशवाह का कहना है कि हमारा घर मंदिर के निकट है। रोज ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर से घंटियों की कभी-कभार आवाज सुनी गई है। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन अक्सर ऐसा होता है कि जब मंदिर का ताला खोला जाता है तो पूजा-आरती के पूर्व ही मंदिर अंदर से साफ-सुथरा मिलता है और ऐसा लगता है जैसे किसी ने पूजा की हो।
जिस तरह इस मंदिर में चूहे नाग की परिक्रमा करते हैं वैसे ही यहां की नदी सोमवती भी इस मंदिर का गोल चक्कर लगाते हुए कालीसिंध में जा मिली है।
जब हमने गंधर्वपुरी गांव के सरपंच विजयसिंह चौहान से इस संबंध में बात की तो उनका भी यही कहना था कि चूहापाली में सैकड़ों सालों से यह चल रहा है। यहां परिक्रमा के अवशेष पाए जाते हैं, लेकिन आज तक किसी ने देखा नहीं। गांव के बड़े-बूढ़ों से सुनते आए हैं।
यह एक प्राचीन नगरी है और यहां आस्था की बात पर ग्रामीणजन कहते हैं कि गंधर्वसेन के मंदिर में आने वाले का हर दुख मिटता है। जो भी यहां आता है उसको शांति का अनुभव होता है। यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। इसका गुंबद परमारकाल में बना है, लेकिन नींव और मंदिर के स्तंभ तथा दीवारें बौद्धकाल की मानी जाती हैं। राजा गंधर्वसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य और भर्तृहरि के पिता थे।
अब यह आपको तय करना है कि क्या वाकई यह चमत्कार है या अंधविश्वास।
कैसे पहुंचे :
देवास की सोनकच्छ तहसील में स्थित है गंधर्वपुरी। देवास से बस द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। देवास के लिए इंदौर से बस और ट्रेन उपलब्ध है।
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