Real Hindi Snake Story : कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाये घट जाती है जिन पर यकीन करना मुश्किल होता है। ऐसी ही एक घटना हाल ही में बरेली के देबरनिया थाना क्षेत्र के भुड़वा नगला गांव में घटी जब उस गाँव का मृत लड़का 14 साल बाद जिन्दा घर लौट आया। लड़के का नाम छत्रपाल व उसके पिता का नाम नन्थू लाल है। नन्थू लाल के घर बेटे को देखने वालों की भीड़ जमा हो रही है।लड़के के परिजन और गाँव वाले उसको पहचान चुके है। हर जगह छत्रपाल चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग इस चमत्कार को नमस्कार करने पर मजबूर हैं। आइये अब हम आपको छत्रपाल के मरने से लेकर वापस लौटने कि घटना को विस्तारपूर्वक बताते है।
घटना कुछ इस प्रकार है कि आज से 14 साल पहले छत्रपाल अपने पिता नन्थू लाल के साथ खेत में काम कर रहा था जहा पर उसे एक ज़हरीले सांप ने डस लिया। सांप का ज़हर तेजी से उसके शारीर में फैलने लगा। उसे तुरंत नज़दीकी अस्पताल ले जाया गया पर तब तक देर हो चुकी थी, डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। परिजन उसके शव को लेकर वापस घर आ गए और उसके अंतिम संस्कार कि क्रिया शुरू कर दी। हिंदू मान्यता के मुताबिक, पवित्र व्यक्ति, बच्चे, गर्भवती, कुष्ठ रोग और सांप के काटे जाने वाले व्यक्ति का दाह संस्कार नहीं किया जाता है। इन सभी को नदी में बहा दिया जाता है। अतः लड़के के परिजनो ने उसका अंतिम संस्कार करते हुए उसके शव को गंगा में बहा दिया। बहता हुआ छत्रपाल हरि सिंह सपेरे को मिला, जिसने उसका जहर उतार कर उसे फिर से जिन्दा कर दिया। छत्रपाल के साथ हरी सिंह भी उसके गाँव आया हुआ है।
सपेरे हरी सिंह ने बताया की उसने यह विद्या अपने गुरु से सीखी थी, क्योंकि वह भी मर कर ही जिन्दा हुआ था। उनके भी शव का अंतिम संस्कार कर गंगा में बहा दिया गया था। बहते हुए वह बंगाल पहुंच गए, जहां पर एक गुरु ने उनको जिन्दा किया। हरी सिंह कहते हैं की एक परंपरा है कि यदि हम किसी को जिन्दा करते हैं तो चौदह साल तक उसे हमारे पास शिष्य बन कर रहना पड़ता है। सिर्फ छत्रपाल ही नहीं बल्कि कई ऐसे शिष्य हैं जो मरकर जिन्दा हुए हैं और उनके साथ घूम रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वह सर्पदंश से मरे हुए लोगों की निशुल्क मदद करते हैं और इसके लिए वह जगह-जगह घूमते रहते हैं। साथ ही लाइलाज बीमारियों का भी फ्री में इलाज करते हैं। सांप के काटने से मर चुके दर्जनों लोगों को इन्होने जीवन दान देकर उनके परिजनों को बगैर कीमत वसूले सौंपे हैं। मौत के बाद छत्रपाल को जीवन दान देकर सपेरा हरी सिंह अपने कबीले की परंपरा को बताते हुए कहते हैं कि जिन्दा किया हुआ इंसान कम से कम चौदह वर्ष तक हमारे साथ रहता है। उसके बाद वह अपनी या परिजनों की मर्जी से अपने घर जा सकता है नहीं तो वह जीवन भर हमारे साथ रहे और हमारी तरह बीन बजाय और गुरु शिक्षा ग्रहण करते हुए साधू रूपी जीवन जिए।
सपेरे हरी सिंह दावा करते हैं कि सांप का काटा हुआ इंसान मर जाए और उसके नाक, कान औऱ मुंह से खून नहीं निकला हो तो वह एक महीने दस दिन बाद भी उसे जिन्दा कर लेते हैं। इसी तरह जिन्दा किए हुए कई लोग आज अपने परिवार के साथ जिंदगिया जी रहे हैं। सांप के काटे का इलाज सबसे आसान है। इस इलाज में इस्तेमाल में लाने वाला मुख्य यंत्र साइकिल में हवा डालने वाला पम्प होता है। इसी पम्प और कुछ जड़ी बूटियों से वह मरे हुए लोगों को फिर से जीवन दान देते हैं। बहरहाल जो भी हो यहां सब कुछ फ़िल्मी अंदाज में हुआ। मरे हुए इंसान का दोबारा जिन्दा होकर आना अपने आप में चमत्कार है।
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छत्रपाल
घटना कुछ इस प्रकार है कि आज से 14 साल पहले छत्रपाल अपने पिता नन्थू लाल के साथ खेत में काम कर रहा था जहा पर उसे एक ज़हरीले सांप ने डस लिया। सांप का ज़हर तेजी से उसके शारीर में फैलने लगा। उसे तुरंत नज़दीकी अस्पताल ले जाया गया पर तब तक देर हो चुकी थी, डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। परिजन उसके शव को लेकर वापस घर आ गए और उसके अंतिम संस्कार कि क्रिया शुरू कर दी। हिंदू मान्यता के मुताबिक, पवित्र व्यक्ति, बच्चे, गर्भवती, कुष्ठ रोग और सांप के काटे जाने वाले व्यक्ति का दाह संस्कार नहीं किया जाता है। इन सभी को नदी में बहा दिया जाता है। अतः लड़के के परिजनो ने उसका अंतिम संस्कार करते हुए उसके शव को गंगा में बहा दिया। बहता हुआ छत्रपाल हरि सिंह सपेरे को मिला, जिसने उसका जहर उतार कर उसे फिर से जिन्दा कर दिया। छत्रपाल के साथ हरी सिंह भी उसके गाँव आया हुआ है।
सपेरे हरी सिंह ने बताया की उसने यह विद्या अपने गुरु से सीखी थी, क्योंकि वह भी मर कर ही जिन्दा हुआ था। उनके भी शव का अंतिम संस्कार कर गंगा में बहा दिया गया था। बहते हुए वह बंगाल पहुंच गए, जहां पर एक गुरु ने उनको जिन्दा किया। हरी सिंह कहते हैं की एक परंपरा है कि यदि हम किसी को जिन्दा करते हैं तो चौदह साल तक उसे हमारे पास शिष्य बन कर रहना पड़ता है। सिर्फ छत्रपाल ही नहीं बल्कि कई ऐसे शिष्य हैं जो मरकर जिन्दा हुए हैं और उनके साथ घूम रहे हैं।
छत्रपाल व हरी सिंह
उन्होंने कहा कि वह सर्पदंश से मरे हुए लोगों की निशुल्क मदद करते हैं और इसके लिए वह जगह-जगह घूमते रहते हैं। साथ ही लाइलाज बीमारियों का भी फ्री में इलाज करते हैं। सांप के काटने से मर चुके दर्जनों लोगों को इन्होने जीवन दान देकर उनके परिजनों को बगैर कीमत वसूले सौंपे हैं। मौत के बाद छत्रपाल को जीवन दान देकर सपेरा हरी सिंह अपने कबीले की परंपरा को बताते हुए कहते हैं कि जिन्दा किया हुआ इंसान कम से कम चौदह वर्ष तक हमारे साथ रहता है। उसके बाद वह अपनी या परिजनों की मर्जी से अपने घर जा सकता है नहीं तो वह जीवन भर हमारे साथ रहे और हमारी तरह बीन बजाय और गुरु शिक्षा ग्रहण करते हुए साधू रूपी जीवन जिए।
हरी सिंह
सपेरे हरी सिंह दावा करते हैं कि सांप का काटा हुआ इंसान मर जाए और उसके नाक, कान औऱ मुंह से खून नहीं निकला हो तो वह एक महीने दस दिन बाद भी उसे जिन्दा कर लेते हैं। इसी तरह जिन्दा किए हुए कई लोग आज अपने परिवार के साथ जिंदगिया जी रहे हैं। सांप के काटे का इलाज सबसे आसान है। इस इलाज में इस्तेमाल में लाने वाला मुख्य यंत्र साइकिल में हवा डालने वाला पम्प होता है। इसी पम्प और कुछ जड़ी बूटियों से वह मरे हुए लोगों को फिर से जीवन दान देते हैं। बहरहाल जो भी हो यहां सब कुछ फ़िल्मी अंदाज में हुआ। मरे हुए इंसान का दोबारा जिन्दा होकर आना अपने आप में चमत्कार है।
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