Shani Temple Morena Gwalior History in Hindi : हनुमान जी ने लंका से फेंका तो यहां गिरे शनिदेव, मौजूद हैं गिरने के निशान – मध्य प्रदेश में ग्वालियर के नजदीकी एंती गांव में शनिदेव मंदिर का देश में विशेष महत्व है। देश के सबसे प्राचीन त्रेतायुगीन शनि मंदिर में प्रतिष्ठत शनिदेव की प्रतिमा भी विशेष है। माना जाता है कि ये प्रतिमा आसमान से टूट कर गिरे एक उल्कापिंड से निर्मित है। ज्योतिषी व खगोलविद मानते है कि शनि पर्वत पर निर्जन वन में स्थापित होने के कारण यह स्थान विशेष प्रभावशाली है। महाराष्ट्र के सिगनापुर शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनि शिला भी इसी शनि पर्वत से ले जाई गई है।
त्रेतायुग में आकर विराजे थे शनिदेव
माना जाता है कि शनिश्चरा स्थित श्री शनि देव मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। सिंधिया शासकों द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया गया। रियातसकालीन दस्तावेजों के मुताबिक 1808 में ग्वालियर के तत्कालीन महाराज दौलतराव सिंधिया ने मंदिर की व्यवस्था के लिए जागीर लगवाई। तत्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया ने 1945 में जागीर को जप्त कर यह देवस्थान औकाफ बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज ग्वालियर के प्रबंधन में सौंप दिया तबसे इस देवस्थान का प्रबंधन औकाफ बोर्ड (मध्य प्रदेश सरकार के अंतर्गत) के प्रबंधन में है। वर्तमान में इसका प्रबंधन जिला प्रशासन मुरैना द्वारा किया जाता है।
महाबली हनुमान ने यहां भेजा था शनिदेव को
प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि कई दूसरे देवताओं के साथ रावण ने शनिदेव को भी कैद कर रखा था। जब हनुमान जी लंका जलाने की जुगत में थे तो शनि देव ने इशारा कर आग्रह किया कि उन्हें आजाद कर दें तो रावण का नाश करने में मददगार होंगे। बजरंगबली ने शनिदेव को रावण की कैद से छुड़ाया तो उस वक्त दुर्बल हो चुके शनिदेव ने उनसे दोबारा ताकत पाने के लिए सुरक्षित स्थान दिलाने का अनुरोध किया। हनुमान जी ने उन्हें लंका से प्रक्षेपित किया तो शनिदेव इस क्षेत्र में आकर प्रतिष्ठित हो गए। तब से यह क्षेत्र शनिक्षेत्र के नाम से विख्यात हो गया। देश भर से श्रद्धालु न्याय के देवता से इंसाफ की गुहार लगाने हर शनिश्चरी अमावस्या को यहां आते हैं। कहा जाता है कि लंका से प्रस्थान करते हुए शनिदेव की तिरछी नजरों के वार ने न सिर्फ सोने की लंका को हनुमान जी के द्वारा खाक में मिलवा दिया, साथ ही रावण का कुल के साथ विनाश करा कर शनि न्याय को प्रतिस्थापित किया।
आज भी मौजूद हैं उल्कापात के निशान
जब हनुमान जी के प्रक्षेपित शनिदेव यहां आ कर गिरे तो उल्कापास सा हुआ। शिला के रूप में वहां शनिदेव के प्रतिष्ठत होने से एक बड़ा गड्ढा बन गया, जैसा कि उल्का गिरने से होता है। ये गड्ढा आज भी मौजूद है।
शनिदेव के आगमन से क्षेत्र बन गया था लौह प्रधान
शनि क्षेत्र के तौर पर मशहूर इस इलाके में उस वक्त लौह अयस्क प्रचुर मात्रा में पाया जाता था। इतिहास में प्रमाण मिले है कि ग्वालियर के आसपास लोहे का धातुकर्म बड़े पैमाने पर होता रहा था। आज भी यहां के भू-गर्भ में लौह-अयस्क की प्रधानता है।
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त्रेतायुग में आकर विराजे थे शनिदेव
माना जाता है कि शनिश्चरा स्थित श्री शनि देव मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। सिंधिया शासकों द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया गया। रियातसकालीन दस्तावेजों के मुताबिक 1808 में ग्वालियर के तत्कालीन महाराज दौलतराव सिंधिया ने मंदिर की व्यवस्था के लिए जागीर लगवाई। तत्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया ने 1945 में जागीर को जप्त कर यह देवस्थान औकाफ बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज ग्वालियर के प्रबंधन में सौंप दिया तबसे इस देवस्थान का प्रबंधन औकाफ बोर्ड (मध्य प्रदेश सरकार के अंतर्गत) के प्रबंधन में है। वर्तमान में इसका प्रबंधन जिला प्रशासन मुरैना द्वारा किया जाता है।
महाबली हनुमान ने यहां भेजा था शनिदेव को
प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि कई दूसरे देवताओं के साथ रावण ने शनिदेव को भी कैद कर रखा था। जब हनुमान जी लंका जलाने की जुगत में थे तो शनि देव ने इशारा कर आग्रह किया कि उन्हें आजाद कर दें तो रावण का नाश करने में मददगार होंगे। बजरंगबली ने शनिदेव को रावण की कैद से छुड़ाया तो उस वक्त दुर्बल हो चुके शनिदेव ने उनसे दोबारा ताकत पाने के लिए सुरक्षित स्थान दिलाने का अनुरोध किया। हनुमान जी ने उन्हें लंका से प्रक्षेपित किया तो शनिदेव इस क्षेत्र में आकर प्रतिष्ठित हो गए। तब से यह क्षेत्र शनिक्षेत्र के नाम से विख्यात हो गया। देश भर से श्रद्धालु न्याय के देवता से इंसाफ की गुहार लगाने हर शनिश्चरी अमावस्या को यहां आते हैं। कहा जाता है कि लंका से प्रस्थान करते हुए शनिदेव की तिरछी नजरों के वार ने न सिर्फ सोने की लंका को हनुमान जी के द्वारा खाक में मिलवा दिया, साथ ही रावण का कुल के साथ विनाश करा कर शनि न्याय को प्रतिस्थापित किया।
शनिदेव के लंका से आकर गििरने से बना गड्ढा
आज भी मौजूद हैं उल्कापात के निशान
जब हनुमान जी के प्रक्षेपित शनिदेव यहां आ कर गिरे तो उल्कापास सा हुआ। शिला के रूप में वहां शनिदेव के प्रतिष्ठत होने से एक बड़ा गड्ढा बन गया, जैसा कि उल्का गिरने से होता है। ये गड्ढा आज भी मौजूद है।
शनि मंदिर में उमड़ती श्रद्धालुओं की भीड़
शनिदेव के आगमन से क्षेत्र बन गया था लौह प्रधान
शनि क्षेत्र के तौर पर मशहूर इस इलाके में उस वक्त लौह अयस्क प्रचुर मात्रा में पाया जाता था। इतिहास में प्रमाण मिले है कि ग्वालियर के आसपास लोहे का धातुकर्म बड़े पैमाने पर होता रहा था। आज भी यहां के भू-गर्भ में लौह-अयस्क की प्रधानता है।
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