वृंदावन का नाम आपने सुना होगा। मान्यताओं के अनुसार यह वही नगरी है जहां आज भी राधा-कृष्ण अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाने आते हैं और उसके बाद निधिवन परिसर स्थित रंग महल में शयन करते हैं। इसीलिए रंग महल में आज भी माखन-मिश्री उनके लिए रखा जाता है। शाम को आरती के बाद महल के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। मनुष्य तो मनुष्य, पशु-पक्षी भी रात आठ बजे के बाद निधि वन छोड़कर चले जाते हैं। रंग महल में चंदन का बेड है जिसे शाम को सात बजे के पहले सजा दिया जाता है। श्रृंगार का सामान, दातून, एक लोटा पानी, पान आदि रख दिए जाते हैं। जब सुबह सुबह 5:30 बजे रंग महल का कपाट खोला जाता है तो दातून गीली मिलती है, सामान व बिस्तर बिखरा हुआ मिलता है, जैसे रात को कमरे में कोई सोया रहा हो। लोटा खाली मिलता है। यहां पर केवल श्रृंगार सामग्रियां ही चढ़ाई जाती हैं और वही भक्तों में प्रसाद स्वरूप वितरित भी की जाती हैं। मान्यता है कि जो रात को यहां रुक गया वह सांसारिक बंधन से मुक्त हो गया। ऐसे कई लोगों की समाधि परिसर में बनी हुई है। लेकिन बाहर से देखने पर मुक्त हुआ व्यक्ति पागल दिखता है, इसलिए लोग कहते हैं कि जो रात को यहां रुका वह पागल हो जाएगा। पूरा निधिवन परिसर लगभग दो-ढाई एकड़ में फैला है।
छिपकर रास देखा तो हो जाएंगे पागल
मान्यता है कि यदि किसी ने छिपकर रंग महल में भगवान का रास देखने की कोशिश की तो पागल हो जाएगा। वहां आसपास के मकानों में खिड़कियां नहीं है ताकि कोई निधि वन की तरफ देख न ले। लोगों के अनुसार जिसने उधर रात को रेखने की कोशिश की, वह अंधा या पागल हो गया। लोग कहते हैं कि कुछ वर्षों पूर्व जयपुर से एक भक्त आया था जो भगवान का रास देखने के लिए निधिवन में छिपकर बैठ गया। सुबह निधिवन का गेट खुलने पर वह बेहोश मिला और अर्द्धविक्षिप्त हो गया था। निधिवन में एक पागल बाबा की समाधि है, कहा जाता है कि उन्होंने भी एक बार छिपकर भगवान का रास देखने की कोशिश की थी, जिसकी वजह से वह पागल हो गए थे। चूंकि वह भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे, इसलिए निधिवन कमेटी ने परिसर में ही उनकी मृत्यु के बाद उनकी समाधि बनवा दी है। अपने गुरु के मुंह से निधि वन की महिमा सुनकर कलकत्ता से एक भक्त वृंदावन आया और रात को छिपकर राधा-कृष्ण का रास देखने की कोशिश की। सुबह जब कपाट खोला गया तो वह बेहोश मिला और उसके मुंह से झाग निकल रहा था। इसी स्थिति में वह तीन दिन रहा। उसके गुरु तक यह बात पहुंची तो पांचवें दिन वह आए और उसे अपने गोवर्धन पर्वत स्थित आश्रम में ले गए। उसने गुरु जी से कागज-कलम मांगा और दीवार के सहारे बैठकर कुछ लिखा और शरीर छोड़ दिया। गुरु जी स्नान करने गए थे, जब वह लौटे तो उसका लिखा हुआ कागज देखा, उस पर बंगाली भाषा में लिखा था- कि आपके कहने पर मैं यकीन नहीं करता था लेकिन मैंने अपनी आंखों से भगवान को रास रचाते हुए देखा है, अब मेरी जीने की कोई इच्छा नहीं है। उसका लिखा हुआ कागज आज भी मथुरा के संग्रहालय में सुरक्षित है।
निधि वन की खासियत
निधि वन में तुलसी पौधे जगह-जगह जोड़े में हैं। वहां कोई तुलसी का पौधा अकेले नहीं मिलेगा। कहा जाता है कि जब भगवान राधा-कृष्ण रास रचाते हैं तो तुलसी के ये जोड़े गोप-गोपियों के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। यहां तुलसी के पौधों को कोई छूता भी नहीं है, कहा जाता है कि जो भी यहां लगे तुलसी के पौधों या उनकी डंडी ले जाने की कोशिश किया, उसके ऊपर बड़ी आपदा आई।
- यहां लगे हर वृक्ष की शाखाएं नीचे की ओर झुकी और आपस में गुंथी हुई दिखाई देती हैं। कोई वृक्ष सीधा नहीं खड़ा है। वृक्षों की शाखाएं झुकी होने के नाते रास्ता बनाने के लिए शाखाओं को डंडे लगाकर रोका गया है।
- निधि वन परिसर में सोलह हजार वृक्ष हैं। कहा जाता है कि जब भगवान रात को रास रचाते हैं तो ये वृक्ष उनकी सोलह हजार रानियों के रूप में प्रकट हो जाते हैं।
- संगीत सम्राट स्वामी हरिदास जी की जीवित समाधि, विशाखा कुंड, रंग महल, बांके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल, राधारानी बंशी चोर आदि निधि वन के दर्शनीय स्थान हैं।
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अर्द्धरात्रि के बाद जहां आज भी रास रचाते हैं राधाकृष्ण निधिवन
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