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Tuesday, August 2

भृर्तहरि की गुफ़ा का रहस्य और प्रज्वलित धुनी

भारतीय इतिहास न केवल प्राचीन है अपितु न जाने कितने ही पुरातन सत्य प्रसंगों से भरा पड़ा है इसी सूचि में हम आपको बताने जा रहे हैं उज्ज्जैन के एक ऐसे राजा की सच्ची घटना जो कुछ सौ वर्षो पुरानी है और अदभुत रहस्यों से भरी पड़ी है आपको भी ये जानकर बहुत हैरानी होगी मै स्वय भी इस गुफ़ा के रहस्यों को देख चुका हूँ जो बहुत ही अचंभित करने वाले हैं आप भी अवश्य पढ़ें और अवसर हो तो घूम कर भी आएँ।

उज्जैन में भृर्तहरि की गुफ़ा स्थित है। इसके संबंध में यह माना जाता है कि यहाँ भृर्तहरि ने तपस्या की थी। यह गुफ़ा शहर से बाहर एक सुनसान इलाक़े में है। गुफ़ा के पास ही शिप्रा नदी बह रही है। गुफ़ा के अंदर जाने का रास्ता काफ़ी छोटा है। जब हम इस गुफ़ा के अंदर जाते हैं तो साँस लेने में भी कठिनाई महसूस होती है। गुफ़ा की ऊंचाई भी काफ़ी कम है, अत: अंदर जाते समय काफ़ी सावधानी रखनी होती है। यहाँ पर एक गुफ़ा और है जो कि पहली गुफ़ा से छोटी है। यह गोपीचन्द कि गुफ़ा है जो कि भृर्तहरि का भतीजा था।



यहाँ प्रकाश भी काफ़ी कम है, अंदर रोशनी के लिए बल्ब लगे हुए हैं। इसके बावजूद गुफ़ा में अंधेरा दिखाई देता है। यदि किसी व्यक्ति को डर लगता है तो उसे गुफ़ा के अंदर अकेले जाने में भी डर लगेगा। यहाँ की छत बड़े-बड़े पत्थरों के सहारे टिकी हुई है। गुफ़ा के अंत में राजा भृर्तहरि की प्रतिमा है और उस प्रतिमा के पास ही एक और गुफ़ा का रास्ता है। इस दूसरी गुफ़ा के विषय में ऐसा माना जाता है कि यहाँ से चारों धामों का रास्ता है। गुफ़ा में भृर्तहरि की प्रतिमा के सामने एक धुनी भी है, जिसकी राख हमेशा गर्म ही रहती है।

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