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Monday, March 28

Naad Yoga - The miraculous way for sages and sages to remain young forever

 Naad Yoga: चक्र जागरण के लिए योग सबसे आसान माध्यम है। कुंडलिनी के सात चक्रों में से पांचवां चक्र यानी विशुद्धि चक्र शुद्धिकरण का केंद्र है। इसका संबंध जीवन चेतना के शुद्धिकरण व संतुलन से है। योगियों ने इसे अमृत और विष के केंद्र के रूप में भी परिभाषित किया है। विशुद्धि चक्र की साधना से एक ऐसी स्थिति प्रकट होती है, जिससे जीवन में अनेकों विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूतियां आती हैं। इससे साधक के ज्ञान में वृद्धि होती है। जीवन कष्टप्रद न रहकर आनंद से भरपूर हो जाता है।

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कहां होता है ये चक्र
यह चक्र ग्रेव जालिका में गले के ठीक पीछे स्थित है। इसका क्षेत्र गले के सामने या थॉयराइड ग्रंथि पर है। शारीरिक स्तर पर विशुद्धि का संबंध ग्रसनी व स्वर यंत्र तंत्रिका जालकों से है। योगशास्त्रों में इसे प्रतीकात्मक रूप से गहरे भूरे रंग के कमल की तरह बताया गया है। मगर कुछ साधकों ने इसका अनुभव 16 पंखुड़ियों वाले बैंगनी रंग के कमल की तरह किया है। ये 16 पंखुड़ियां इस केंद्र से जुड़ी नाड़ियों से संबंधित हैं। हर पंखुड़ी पर संस्कृत का एक अक्षर चमकदार सिंदूरी रंग से लिखा है- अं, आं, इं, इ, उं, ऊं, ऋं, ऋं, लृं, लृं, एं, ऐं, ओं, औं, अं, अः। यह आकाश तत्त्व का प्रतीक है। विशुद्धि चक्र के उस साधक के लिए जिसकी इन्द्रियां निर्दोष व नियंत्रित है।

नाद योग (Naad Yoga) से कैसे जागृत होता है चक्र
विशुद्धि चक्र के जागरण की सरल साधना नादयोग है। योगशास्त्रों में विशुद्धि और मूलाधार स्पंदनों के दो आधार भूत केन्द्र माने गए हैं। नादयोग (Naad Yoga) की प्रक्रिया में चेतना के ऊर्ध्वीकरण का संबंध संगीत के स्वरों से है। हर स्वर का संबंध किसी एक चक्र विशेष की चेतना के स्पंदन स्तर से संबंधित होता है। बहुधा वे स्वर जो मंत्र, भजन व कीर्तन के माध्यम से उच्चारित किए जाते हैं, विभिन्न चक्रों के जागरण के समर्थ माध्यम हैं। सा रे गा म की ध्वनि तरंगों का मूलाधार सबसे पहला स्तर एवं विशुद्धि पांचवा स्तर है। इनसे जो मूल ध्वनियां निकलती हैं, वही चक्रों का संगीत है। ये ध्वनियां जो विशुद्धि यंत्र की सोलह पंखुड़ियों पर चित्रित हैं- मूल ध्वनियां हैं। इनका प्रारंभ विशुद्धि चक्र से होता है। इनका संबंध दिमाग से है। नादयोग या कीर्तन का अभ्यास करने से मन आकाश की तरह शुद्ध हो जाता है।

कौन है इस चक्र के देवता
विशुद्धि चक्र के देवता सदाशिव हैं। जिनका रंग एकदम श्वेत है। उनकी तीन आंखें, पांच मुख व दस भुजाएं हैं और वे एक व्याघ्र चर्म लपेटे हुए हैं। उनकी देवी साकिनी हैं, जो चन्द्रमा से प्रवाहित होने वाले अमृत के सागर से भी ज्यादा पवित्र हैं। उनके परिधान पीले हैं। उनके चार हाथों में से प्रत्येक में एक-एक धनुष, बाण, फंदा तथा अंकुश है। इसका प्रवाह सदा ही ऊपर की ओर रहता है। ये आज्ञा चक्र के साथ मिलकर विज्ञानमय कोष के आधार का निर्माण करता है। जहां से अतीन्द्रिय विकास शुरू होता है। योग शास्त्रों में ऐसा स्पष्ट उल्लेख है कि सिर के पिछले भाग में बिंदु स्थित चंद्रमा से अमृत का स्राव होता रहता है। यह अमृत बिंदु विसर्ग से व्यक्तिगत चेतना में गिरता है। इस दिव्य द्रव को अनेक नामों से जाना जाता है। वेदों में इसे ही सोम कहा गया है। बिंदु और विशुद्धि के बीच में एक अन्य छोटा सा अतीन्द्रिय केन्द्र है। इसे योगियों ने ललना चक्र कहा है। जब अमृत बिंदु से झरता है तो इसका भंडारण ललना में होता है। कुछ अभ्यासों जैसे खेचरी मुद्रा आदि से अमृत ललना से स्रावित होकर शुद्धिकरण के केंद्र विशुद्धि चक्र तक पहुंचता है। जब विशुद्धि जाग्रत रहता है तो यह दिव्य द्रव वहीं रुक जाता है और वहीं पर इसका प्रयोग कर लिया जाता है। इसी के साथ इसका स्वरूप अमरत्व प्रदायक अमृत के रूप में बदल जाता है। योगियों के हमेशा युवा रहने का रहस्य विशुद्धि चक्र के जागरण से संबंधित है।

क्या होता है इस चक्र के जागरण से
इसके जागरण से कायाकल्प तो होता ही है। साथ ही जो शक्ति प्राप्त होती है, वह खत्म नहीं होती व ज्ञान से पूर्ण होती है। व्यक्ति को वर्तमान के साथ भूत-भविष्य का भी ज्ञान होने लगता है। मानसिक क्षमताओं के तीव्र विकास के कारण उसी श्रवण शक्ति बहुत तेज हो जाती है। मन हमेशा विचार शून्य स्थिति में व भय और आसक्ति से मुक्त रहता है। ऐसा व्यक्ति कर्मों के परिणामों की आसक्ति से हमेशा मुक्त रहकर अपने साधना पथ पर अग्रसर रह सकता है। यहीं उसे वह सारी सामर्थ्य मिलती है, जिसके आधार पर आज्ञा चक्र की सिद्धि मिल सके।

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